कà¥à¤¯à¤¾ संसार महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ की मानव कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ की यथारà¥à¤¥ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को समठसका
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Manmohan Kumar AryaDate
05-Apr-2016Category
शंका समाधानLanguage
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UmeshUpload Date
05-Apr-2016Download PDF
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महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ (1825-1883) ने देश व समाज सहित विशà¥à¤µ की सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गीण उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक कारà¥à¤¯ किया है। कà¥à¤¯à¤¾ हमारे देश और संसार के लोग उनके कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को यथारà¥à¤¥ रूप में जानते व समà¤à¤¤à¥‡ हैं? कà¥à¤¯à¤¾ उनके कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को होने वाले लाà¤à¥‹à¤‚ की वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विशà¥à¤µ व देश के लोगों को है? जब इन व à¤à¤¸à¥‡ अनà¥à¤¯ कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ पर विचार करते हैं तो यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होता है कि हमारे देश व संसार के लोग महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦, उनकी वैदिक विचारधारा और सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के महतà¥à¤µ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž व उदासीन है। यदि वह जानते होते तो उससे लाठउठा कर अपना कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ कर सकते थे। न जानने के कारण वह वैदिक विचारधारा से होने वाले लाà¤à¥‹à¤‚ से वंचित हैं और नानाविध हानियां उठा रहे हैं। अतः यह विचार करना समीचीन है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ की वैदिक विचारधारा के सतà¥à¤¯ व यथारà¥à¤¥ सà¥à¤µà¤°à¥‚प को कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं जान पाये? इस पर विचार करने पर हमें इसका उतà¥à¤¤à¤° यही मिलता है कि महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के पूरà¥à¤µ व बाद में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व तथाकथित धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¥à¤“ं ने सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥, हठ, दà¥à¤°à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾à¤µà¤¶ उनका विरोध किया और उनके बारे में मिथà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करके अपने-अपने अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को उनके व उनकी विचारधारा को जानने व समà¤à¤¨à¥‡ का अवसर व सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ नहीं की। आज à¤à¥€ संसार के अधिकांश लोग मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ विचारों व मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं से बनà¥à¤§à¥‡ व उसमें फंसे हà¥à¤ हैं। सतà¥à¤¯ से अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž वा अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ होने पर à¤à¥€ उनमें जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ होने का मिथà¥à¤¯à¤¾ अहंकार है। रूढि़वादिता के संसà¥à¤•à¤¾à¤° à¤à¥€ इसमें मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण हैं। इन मतों व इनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में सतà¥à¤¯-जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विवेक का अà¤à¤¾à¤µ है जिस कारण वह à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में होने के कारण यदि आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के वैदिक विचारों व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का नाम सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ à¤à¥€ हैं तो उसे संसार के मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ व अपने मत-समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ का विरोधी मानकर उससे दूरी बनाकर रखते हैं।
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ का मिशन कà¥à¤¯à¤¾ था? इस विषय पर विचार करने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि वह संसार के धारà¥à¤®à¤¿à¤•, सामाजिक व देशोनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ संबंधी असतà¥à¤¯ विचारधारा, मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ दूर कर सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित करना चाहते थे। इसी उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने पिता का घर छोड़ा था और सतà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठही वह à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तथा à¤à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ के बाद दूसरे विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ की शरण में सतà¥à¤¯-जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हेतॠजाते गये और उनसे उपलबà¥à¤§ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर उनको पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाले सà¤à¥€ अरà¥à¤µà¤¾à¤šà¥€à¤¨ व पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ à¤à¥€ करते रहे। अपनी इसी धà¥à¤¨ व उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ के कारण वह अपने समय के देश के सà¤à¥€ बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में आये, उनकी संगति की और उनसे जो विदà¥à¤¯à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकते थे, उसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया और इसके साथ हि योगी गà¥à¤°à¥à¤“ं से योग सीख कर सफल योगी बने। उनकी विदà¥à¤¯à¤¾ की पिपासा मथà¥à¤°à¤¾ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ की पाठशाला में सनॠ1860 से सनॠ1863 तक के लगà¤à¤— 3 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€, महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ तथा निरà¥à¤•à¥à¤¤ प़दà¥à¤§à¤¤à¤¿ से संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने के साथ गà¥à¤°à¥ जी से शासà¥à¤¤à¥à¤° चरà¥à¤šà¤¾ कर अपनी सà¤à¥€ à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को दूर करने पर समापà¥à¤¤ हà¥à¤ˆà¥¤ वेद व वैदिक साहितà¥à¤¯ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और योगविदà¥à¤¯à¤¾ सीखकर वह अपने सामाजिक दायितà¥à¤µ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ व गà¥à¤°à¥ की पà¥à¤°à¤°à¥‡à¤£à¤¾ से कारà¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उतरे और सà¤à¥€ मतों के सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ को जानकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने विशà¥à¤µ में धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में असतà¥à¤¯ व मिथà¥à¤¯à¤¾ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं तथा à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को दूर करने के लिठउसका खणà¥à¤¡à¤¨ किया। पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ धरà¥à¤®-मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में जो सतà¥à¤¯ था उसका उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी पूरी शकà¥à¤¤à¤¿ से मणà¥à¤¡à¤¨ वा समरà¥à¤¥à¤¨ किया। आज यदि हम सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ व आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के किसी विरोधी से पूंछें कि महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ मत की किस सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ वा सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ का खणà¥à¤¡à¤¨ किया तो इसका उतà¥à¤¤à¤° किसी मत-मतानà¥à¤¤à¤° वा उसके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ के पास नहीं है। इसका कारण ही यह है कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सतà¥à¤¯ का कà¤à¥€ खणà¥à¤¡à¤¨ नहीं किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तो केवल असतà¥à¤¯ व मिथà¥à¤¯à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का ही खणà¥à¤¡à¤¨ किया है जो कि पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मनà¥à¤·à¥à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ वा धरà¥à¤® है। दूसरा पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ अनà¥à¤¯ मत वालों से यदि यह करें कि कà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी ने वेद संबंधी अथवा अपने किसी असतà¥à¤¯ व मिथà¥à¤¯à¤¾ विचार व मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° किया हो तो बतायें? इसका उतà¥à¤¤à¤° à¤à¥€ किसी मत के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨, आचारà¥à¤¯ व अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं होगा। अतः यह सिदà¥à¤§ तथà¥à¤¯ है कि महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने अपने जीवन में कà¤à¥€ किसी मत के सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ का खणà¥à¤¡à¤¨ नहीं किया और न ही असतà¥à¤¯ व मिथà¥à¤¯à¤¾ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने केवल असतà¥à¤¯ का ही खणà¥à¤¡à¤¨ और सतà¥à¤¯ का मणà¥à¤¡à¤¨ किया जो कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ जाति की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के लिठसà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ व मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को करना अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ है। इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण यह है कि सतà¥à¤¯ वेद धरà¥à¤® का पालन करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीवन अà¤à¥à¤¯à¥à¤¦à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है और इसके साथ वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में मृतà¥à¤¯à¥ होेने पर जनà¥à¤®-मरण के बनà¥à¤§à¤¨ से छूट कर मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है।
यह à¤à¥€ विचार करना आवशà¥à¤¯à¤• है कि सतà¥à¤¯ से लाठहोता है या हानि और असतà¥à¤¯ से à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ किसी को लाठहो सकता है अथवा सदैव हानि ही होती है? वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आधार पर सतà¥à¤¯ के सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤ में महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने à¤à¤• नियम बनाया है कि सतà¥à¤¯ के गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने और असतà¥à¤¯ के छोड़ने में सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ उदà¥à¤¯à¤¤ रहना चाहिये। यह नियम संसार में सरà¥à¤µà¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¯ नियम है। अतः सतà¥à¤¯ से लाठही लाठहोता है, हानि किसी की नहीं होती। हानि तà¤à¥€ होगी यदि हमने कà¥à¤› गलत किया हो। अतः मिथà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ व मत-समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के लोग ही असतà¥à¤¯ का सहारा लेते हैं और सतà¥à¤¯ से डरते हैं। à¤à¤¸à¥‡ मिथà¥à¤¯à¤¾ मतों, उनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤•à¥‹à¤‚ की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के खणà¥à¤¡à¤¨ के लिठमहरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ को दोषी नहीं कहा जा सकता। इस बात को कोई सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करता कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ को जहां आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ हो वहां वह असतà¥à¤¯ का सहारा ले सकता है और जहां सतà¥à¤¯ से लाठहो वहीं सतà¥à¤¯ का आचरण करे। किसी à¤à¥€ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में असतà¥à¤¯ का आचरण अनà¥à¤šà¤¿à¤¤, अधरà¥à¤® वा वा पाप ही कहा जाता है। अतः सतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ करना ही धरà¥à¤® सिदà¥à¤§ होता है और असतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ अधरà¥à¤®à¥¤ महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने वेदों के आधार पर सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶, ऋ़गà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ à¤à¥‚मिका, संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿, आरà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤µà¤¿à¤¨à¤¯ आदि अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की रचना की है। इन गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मनà¥à¤·à¥à¤¯ के धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व अकरà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का वैदिक पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚, यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ व तरà¥à¤• के आधार पर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ किया है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ साधारण मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की बोलचाल की à¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ में लिखा गया वैदिक धरà¥à¤® का सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गीण, सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ व पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। धरà¥à¤® व इसकी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ रूप महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के अनà¥à¤¤ में ‘सà¥à¤µà¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶’ लिखकर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया है। यह सà¥à¤µà¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के यथारà¥à¤¥ धरà¥à¤® के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ व करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ हैं जिनका विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ व उनके अनà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में उपलबà¥à¤˜ है। सà¥à¤µà¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¨à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ की यह सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ संसार के सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठधरà¥à¤®à¤ªà¤¾à¤²à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥ माननीय व आचरणीय है परनà¥à¤¤à¥ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ के कारण लोग इन सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं से अपरिचित होने के कारण इनका आचरण नहीं करते और न उनमें सतà¥à¤¯ मनà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जानने की सचà¥à¤šà¥€ जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ ही है। इसी कारण संसार में मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ बना हà¥à¤† है। इसका à¤à¤• कारण यह à¤à¥€ है कि देश व संसार में धरà¥à¤® समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥€ सतà¥à¤¯ व यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤•à¥‹à¤‚ की कमी है। यदि यह परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ संखà¥à¤¯à¤¾ में होते तो देश और विशà¥à¤µ का चितà¥à¤° वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ से कहीं अधिक उनà¥à¤¨à¤¤ व सनà¥à¤¤à¥‹à¤·à¤ªà¥à¤°à¤¦ होता।
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने सनॠ1863 से वेद वा वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° आरमà¥à¤ किया था जिसने 10 अपà¥à¤°à¥ˆà¤², 1875 को मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ में आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के बाद तेज गति पकड़ी थी। इसके बाद सनॠ1883 तक उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° किया जिसमें वैदिक मत के विरोधियों व विधरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से शासà¥à¤¤à¥à¤° चरà¥à¤šà¤¾, विचार विनिमय, वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª और शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ थे। अनेक मौलिक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की रचना सहित ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ का आंशिक और पूरे यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ किया। उनके बाद उनके अनेक शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने चारों वेदों का à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ पूरà¥à¤£ किया। न केवल वेदों पर अपितॠदरà¥à¤¶à¤¨, उपनिषद, मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ रामायण व महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ आदि पर à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯, अनà¥à¤µà¤¾à¤¦, गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ व टीकायें लिखी रà¥à¤—इं। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ विषयक à¤à¥€ अनेक नये गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की रचना के साथ पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ सहित सà¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को अनेक à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ व सà¥à¤¸à¤®à¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ कर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया गया जिससे संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ सहित आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• विषयों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना अनेक à¤à¤¾à¤·à¤¾-à¤à¤¾à¤·à¥€ लोगों के लिठसरल हो गया। à¤à¤• साधारण हिनà¥à¤¦à¥€ पढ़ा हà¥à¤† वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ समसà¥à¤¤ वैदिक साहितà¥à¤¯ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर सकता है। यह सफलता महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦, आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ व इसके विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की देश व विशà¥à¤µ को बहà¥à¤®à¥‚लà¥à¤¯ देन है। यह सब कà¥à¤› होने पर à¤à¥€ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की वैदिक विचारधारा का जो पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ होना चाहिये था वह नहीं हो सका। इसके पà¥à¤°à¤®à¥à¤– कारणों को हमने लेख के आरमà¥à¤ में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है। वह यही है कि देश व संसार के लोग महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ की मानवमातà¥à¤° की कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ विचारधारा व उनके यथारà¥à¤¥ à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को अपने-अपने अजà¥à¤žà¤¾à¤¨, सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥, हठऔर पूरà¥à¤µà¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ वा दà¥à¤°à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚
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